मध्यप्रदेश की सियासत में एक नया तूफान खड़ा हो गया है। हरदा जिले में पूर्व मंत्री और भारतीय जनता पार्टी के कद्दावर नेता कमल पटेल पर आचार संहिता उल्लंघन का मामला दर्ज किया गया है। यह मामला 7 मई को हुए तीसरे चरण के विधानसभा चुनाव के दौरान सामने आया, जब कमल पटेल अपने नाबालिग पोते के साथ मतदान केंद्र पर पहुंचे थे।
इस मामले ने राजनीतिक गलियारों में भूचाल ला दिया है। कांग्रेस ने इसे ‘लोकतंत्र का अपमान’ करार देते हुए कड़ी कार्रवाई की मांग की है। वहीं, भारतीय जनता पार्टी इसे ‘राजनीतिक द्वेष’ बताते हुए बचाव की मुद्रा में है।
इस घटनाक्रम के केंद्र में है हरदा जिला मुख्यालय स्थित पॉलिटेक्निक महाविद्यालय में बना मतदान केंद्र। यहाँ कमल पटेल अपनी पत्नी के साथ वोट डालने पहुंचे, लेकिन उनके साथ उनका नाबालिग पोता भी मौजूद था। मतदान के दौरान कमल पटेल के पोते की मौजूदगी कैमरों में कैद हो गई, जिसके बाद यह मामला तूल पकड़ गया।
कांग्रेस ने इस घटना को लेकर चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठाते हुए कमल पटेल पर कड़ी कार्रवाई की मांग की है। कांग्रेस जिला अध्यक्ष ओम पटेल और संजय जैन ने मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी से शिकायत दर्ज कराते हुए इस मामले की जांच की मांग की है।
इस मामले में चुनाव आयोग ने तेजी से कार्रवाई करते हुए कई लोगों पर गाज गिराई है। केंद्र की बीएलओ और करताना के सरकारी स्कूल में पदस्थ शिक्षिका शर्मिला पाटिल को सस्पेंड कर दिया गया है। सेक्टर अधिकारी पर अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए वरिष्ठ कार्यालय को लिखा गया है। इसके साथ ही मतदान केंद्र पर तैनात पुलिस कर्मचारी और संबंधित सेक्टर के पुलिस अधिकारियों पर कार्रवाई के लिए हरदा एसपी को लिखा गया है।
यह घटना चुनाव आयोग के लिए एक बड़ी चुनौती बन गई है। इस घटना से यह सवाल उठ रहे हैं कि क्या चुनाव आयोग आचार संहिता का उल्लंघन करने वालों पर निष्पक्ष तरीके से कार्रवाई कर रहा है?
इस मामले में कमल पटेल पर भारतीय दंड संहिता की धारा 188 के अलावा लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 128, 130, 131 के तहत मामला दर्ज किया गया है। न्यायालय में अपराध साबित होने पर कमल पटेल को चुनाव के लिए अयोग्य घोषित किया जा सकता है।
यह मामला कई मायनों में महत्वपूर्ण है। एक तरफ यह मामला चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल खड़े करता है, तो वहीं दूसरी तरफ यह मामला राजनीतिक दलों द्वारा चुनाव प्रक्रिया में आचार संहिता का उल्लंघन करने की प्रवृत्ति को भी उजागर करता है।
यह घटना एक चेतावनी है कि चुनाव प्रक्रिया को पारदर्शी और निष्पक्ष बनाने के लिए सभी राजनीतिक दलों को आचार संहिता का पालन करना चाहिए। चुनाव आयोग को भी यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आचार संहिता का उल्लंघन करने वालों पर कड़ी कार्रवाई की जाए, चाहे वह किसी भी राजनीतिक दल का हो।