मध्य प्रदेश में 7 लाख कर्मचारियों और 5 लाख पेंशनरों की आवाज़ दबाने की कोशिश हो रही है। उद्योग विभाग ने कर्मचारियों और पेंशनरों के हक़ की लड़ाई लड़ने वाले संगठनों का पंजीयन रद्द कर दिया है। अब ये संगठन मंत्रालयों और विभागों में अपनी बात रखने से वंचित हो गए हैं, साथ ही वे सरकार या अधिकारियों को कोई भी पत्र भी नहीं भेज सकते हैं।
यह फैसला कर्मचारियों और पेंशनरों के बीच भारी आक्रोश का विषय बन गया है। संगठनों का कहना है कि उन्हें नोटिस जारी करके बिना किसी सुनवाई के ही पंजीयन रद्द कर दिया गया।
इस मामले को लेकर मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने रजिस्ट्रार फर्म्स सोसायटी के पदाधिकारियों को तलब किया है। यह मामला उनके विभाग के अंतर्गत आता है।
रद्द किए गए पंजीयन में मध्य प्रदेश सचिवालयीन (मंत्रालय) कमर्चारी संघ (55 साल पुराना), मध्य प्रदेश विधानसभा सचिवालय कर्मचारी संघ (52 साल पुराना), पेंशनर्स एसोसिएशन (33 साल पुराना) और तृतीय वर्ग कर्मचारी संघ (3 लाख कर्मचारियों का प्रतिनिधित्व करता है) शामिल हैं। हालांकि, तृतीय वर्ग कर्मचारी संघ का मामला हाईकोर्ट में विचाराधीन है।
कर्मचारी संगठनों ने प्रदेश के मुख्य सचिव को पत्र लिखकर आरोप लगाया है कि सहायक पंजीयक और फर्म्स संस्थाएं भोपाल में पंजीकृत संस्थाओं के साथ भेदभाव कर रही हैं। उन्होंने यह भी आरोप लगाया है कि रजिस्ट्रार फर्म्स सोसायटी ने कुछ पंजीकृत संस्थाओं का पंजीयन अचानक ही खत्म कर दिया, जबकि कुछ संस्थाओं को सालों तक नोटिस दिया जा रहा है।
इस संस्था ने यह भी कहा है कि हाल ही में मंत्रालय में लगी आग में उनका रिकॉर्ड नष्ट हो गया है। यह सवाल अब प्रदेश में बहस का विषय बन गया है। कई लोगों का मानना है कि यह फैसला कर्मचारियों और पेंशनरों की आवाज़ दबाने की एक कोशिश है। इस मामले में मुख्यमंत्री के फैसले का इंतजार है। यह देखना दिलचस्प होगा कि इस मामले में क्या कार्रवाई की जाती है।