मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने एक बार फिर कार्यभारित कर्मचारियों के हक में अहम फैसला सुनाया है। यह मामला नरसिंहपुर निवासी ऋषि कुमार की याचिका पर आधारित था, जिसमें उनके विरुद्ध विभाग द्वारा की गई रिकवरी को चुनौती दी गई थी। विभाग का तर्क था कि कार्यभारित कर्मचारी क्रमोन्नति के पात्र नहीं होते, लेकिन उच्च न्यायालय ने इस तर्क को खारिज करते हुए ऋषि कुमार के पक्ष में फैसला सुनाया।
दरअसल, यह पहली बार नहीं है जब उच्च न्यायालय ने कार्यभारित कर्मचारियों को क्रमोन्नति का अधिकार दिया है। इससे पहले 2009 में तेजूलाल यादव और 2014 में मानसिंह ठाकुर के मामलों में भी इसी तरह के फैसले सुनाए जा चुके हैं। बावजूद इसके, शासन द्वारा नियमों में आवश्यक संशोधन नहीं किया गया, जिसके चलते उच्च न्यायालय को बार-बार एक ही आदेश जारी करने पड़ रहे हैं।
इस मामले में याचिकाकर्ता ऋषि कुमार की ओर से अधिवक्ता मोहनलाल शर्मा, शिवम शर्मा व अमित स्थापक ने पक्ष रखा। उन्होंने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता कार्यभारित व आकस्मिक भुगतान कर्मचारी के रूप में कार्यरत थे और उन्हें क्रमोन्नति का पूरा अधिकार है। उच्च न्यायालय ने पूर्व के फैसलों का हवाला देते हुए याचिकाकर्ता के तर्क को स्वीकार किया और विभाग द्वारा की गई रिकवरी को निरस्त कर दिया।
न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल की एकलपीठ ने अपने आदेश में कहा कि यदि याचिकाकर्ता से कोई रिकवरी की गई है तो उसे 30 दिन के भीतर लौटाया जाए। ऐसा न करने पर विभाग को 8 प्रतिशत ब्याज भी देना होगा। यह फैसला मध्य प्रदेश के हजारों कार्यभारित कर्मचारियों के लिए एक बड़ी राहत की खबर है। साथ ही, यह शासन के लिए भी एक संदेश है कि वह उच्च न्यायालय के आदेशों का सम्मान करते हुए नियमों में आवश्यक बदलाव करे, ताकि कार्यभारित कर्मचारियों के साथ न्याय हो सके।