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lahsun ki kheti kaise kare लहसुन की खेती कैसे की जाती है ,garlic farming से कमाए पैसे

Last updated: 14/04/2024
Kumar
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लहसुन, भारतीय रसोई का एक अहम हिस्सा, न केवल खाने का स्वाद बढ़ाता है, बल्कि अपने औषधीय गुणों के कारण सेहत का भी ख्याल रखता है। मगर इसकी खेती की बारीकियों से अनजान होने के कारण कई किसान इस फसल से दूर रहते हैं। इस लेख में हम लहसुन की खेती के हर पहलू पर विस्तार से चर्चा करेंगे, ताकि आप भी इस लाभदायक फसल को अपनी खेती का हिस्सा बना सकें।

Contents
लहसुन की खेती के लिए उपयुक्त भूमि और जलवायुलहसुन के प्रकार और बुवाई किस प्रकार करेंसिंचाई और खरपतवार नियंत्रणकीट का निरीक्षण करें और रोग प्रबंधन के लिए त्यार रहेकटाई करे और भंडारण में भरेलहसुन की खेती के लाभ

लहसुन की खेती के लिए उपयुक्त भूमि और जलवायु

लहसुन की खेती विभिन्न प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है, लेकिन बलुई दोमट मिट्टी जिसमें जल निकासी की उचित व्यवस्था हो, सबसे उपयुक्त होती है। अच्छी पैदावार के लिए भूमि का pH मान 6 से 7 के बीच होना चाहिए। जलवायु की बात करें तो लहसुन को ठंडी और शुष्क जलवायु पसंद होती है। अत्यधिक ठंड या बरसात का मौसम फसल के लिए नुकसानदायक हो सकता है।

लहसुन की फसल को नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश जैसे पोषक तत्वों की भी आवश्यकता होती है। मिट्टी परीक्षण के आधार पर, रासायनिक उर्वरकों की मात्रा का निर्धारण करें और बुवाई से पहले ही उन्हें मिट्टी में मिला दें।

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लहसुन के प्रकार और बुवाई किस प्रकार करें

भारत में लहसुन की कई किस्में उपलब्ध हैं, जैसे- यमुना सफेद, अगफाउंड व्हाइट, जी-1, जी-41, एचजी-17 आदि। अपने क्षेत्र की जलवायु और मिट्टी के अनुसार उपयुक्त किस्म का चयन करें।

लहसुन की बुवाई अक्टूबर-नवंबर महीने में की जाती है। स्वस्थ और रोगमुक्त कलियों का चयन करें और उन्हें 5-7 सेंटीमीटर की गहराई पर, एक-दूसरे से 10-15 सेंटीमीटर की दूरी पर बोएँ। कलियों को बोने के बाद हल्की सिंचाई करें।

सिंचाई और खरपतवार नियंत्रण

लहसुन की फसल को नियमित सिंचाई की आवश्यकता होती है। सर्दियों में 10-12 दिन के अंतराल पर और गर्मियों में 7-8 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें। मिट्टी में नमी की कमी होने पर पत्तियाँ पीली पड़ने लगती हैं और पैदावार प्रभावित होती है।

खरपतवार फसल के लिए नुकसानदायक होते हैं, इसलिए समय-समय पर निराई-गुड़ाई करके खेत को खरपतवार मुक्त रखें। आप खरपतवार नियंत्रण के लिए रासायनिक दवाइयों का भी इस्तेमाल कर सकते हैं, लेकिन ध्यान रखें कि दवाइयों का छिड़काव करते समय सावधानी बरतें।

कीट का निरीक्षण करें और रोग प्रबंधन के लिए त्यार रहे

लहसुन की फसल पर थ्रिप्स, लीफ माइनर, तना मक्खी जैसे कीट और बैक्टीरियल ब्लाइट, पर्पल ब्लॉच, सफेद सड़न जैसे रोगों का प्रकोप हो सकता है। इनसे बचाव के लिए समय-समय पर फसल का निरीक्षण करें और रोग या कीटों के लक्षण दिखाई देने पर तुरंत उपचार करें। जैविक कीटनाशकों और फफूंदनाशकों का उपयोग करके रासायनिक दवाइयों के दुष्प्रभावों से बचा जा सकता है।

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कटाई करे और भंडारण में भरे

लहसुन की कटाई तब की जाती है जब पत्तियाँ पीली पड़कर सूखने लगती हैं। कटाई के लगभग 15 दिन पहले सिंचाई बंद कर दें। कलियों को सावधानी से जमीन से निकालें और 2-3 दिनों तक छाया में सुखाएं। इसके बाद, सूखे लहसुन को ठंडी और हवादार जगह पर भंडारित करें।

लहसुन की खेती के लाभ

लहसुन की खेती कई मायनों में फायदेमंद है:

  • उच्च लाभ: लहसुन की मांग बाजार में हमेशा बनी रहती है और इसकी कीमत भी अच्छी मिलती है, जिससे किसानों को अच्छा मुनाफा होता है।
  • कम लागत: लहसुन की खेती में अन्य फसलों की तुलना में कम लागत आती है।
  • औषधीय गुण: लहसुन में कई औषधीय गुण होते हैं, जिससे इसकी मांग बनी रहती है।
  • मिश्रित खेती: लहसुन को अन्य फसलों के

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By Kumar
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