भारत की पावन भूमि, जहाँ अध्यात्म की गंगा हर कण में बहती है, वहाँ अनगिनत देवी-देवताओं के मंदिर श्रद्धालुओं के लिए आस्था के दीपक हैं। इनमें भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंग, परम प्रकाश पुंज स्वरूप, देश के कोने-कोने में विराजमान हैं। इन्हीं बारह ज्योतिर्लिंगों में से दो मध्यप्रदेश की पावन धरती को अपनी शोभा से अलंकृत करते हैं – उज्जैन का महाकालेश्वर और नर्मदा नदी के तट पर बसा ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग। आज हम इस लेख में ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग की महिमा, इससे जुड़ी पौराणिक कथाओं, और इस पावन स्थल की यात्रा के अनुभव में डूबकी लगाएंगे।
नर्मदा के आलिंगन में ओंकारेश्वर
मध्यप्रदेश के खंडवा जिले में, नर्मदा नदी के बीचोंबीच एक द्वीप पर स्थित है ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग। यह द्वीप, अपने आप में अद्भुत है, क्योंकि इसका आकार पवित्र प्रतीक ‘ॐ’ के समान है। यही कारण है कि इस स्थान को ओंकारेश्वर कहा जाता है – ओंकार का ईश्वर। इस द्वीप पर ही विराजमान हैं दो ज्योतिर्लिंग – ओंकारेश्वर और ममलेश्वर, जो भाई-बहन के रूप में पूजे जाते हैं। मान्यता है कि माता पार्वती यहाँ भगवान शिव के साथ निवास करती हैं, और दोनों रात्रि में चौसर का खेल खेलते हैं। इसीलिए मंदिर में चौसर-पासे, पालना और सेज भी सजाए जाते हैं।
ओम्कारेश्वर की पौराणिक गाथाएँ
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग से जुड़ी कई पौराणिक कथाएँ हैं। एक कथा के अनुसार, विंध्य पर्वत और मेरु पर्वत के बीच श्रेष्ठता को लेकर विवाद छिड़ गया। तब विंध्य पर्वत ने अपनी तपस्या से भगवान शिव को प्रसन्न किया। भगवान शिव ने प्रसन्न होकर विंध्य पर्वत को वरदान दिया कि वह अपनी इच्छा अनुसार बढ़ सकता है। विंध्य पर्वत ने अपनी ऊँचाई इतनी बढ़ा ली कि सूर्य और चंद्रमा का मार्ग रुक गया। देवताओं ने चिंतित होकर भगवान विष्णु से प्रार्थना की। भगवान विष्णु ने ऋषि अगस्त्य को विंध्य पर्वत के पास भेजा। ऋषि अगस्त्य ने विंध्य पर्वत से कहा कि जब तक वे दक्षिण से वापस न आ जाएँ, तब तक वह अपनी ऊँचाई कम रखे। विंध्य पर्वत ने उनकी बात मान ली। ऋषि अगस्त्य दक्षिण चले गए और फिर कभी वापस नहीं आए। इस प्रकार विंध्य पर्वत की ऊँचाई नियंत्रित रही और देवताओं का मार्ग खुला रहा। विंध्य पर्वत द्वारा की गई तपस्या के फलस्वरूप ही ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग का प्रादुर्भाव हुआ।
ओम्कारेश्वर मंदिर की वास्तुकला
ओंकारेश्वर मंदिर की वास्तुकला उत्तर भारतीय शैली को दर्शाती है। यह पाँच मंजिला मंदिर है, जिसके सबसे निचले तल पर श्री ओंकारेश्वर देव, फिर श्री महाकलेश्वर, श्री सिद्धनाथ, श्री गुप्तेश्वर और अंत में ध्वजाधारी देवता विराजमान हैं। मंदिर के चारों ओर नर्मदा नदी की शांत धारा और हरे-भरे पहाड़ों का मनोरम दृश्य, आध्यात्मिकता के साथ-साथ प्राकृतिक सौंदर्य का भी अनुभव कराता है।
तीर्थयात्रा का अनुभव
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग की यात्रा एक अविस्मरणीय अनुभव है। यहाँ आने वाले श्रद्धालु नर्मदा नदी में डुबकी लगाकर पापों से मुक्ति और आत्मिक शांति की कामना करते हैं। नौका विहार, पहाड़ों की चढ़ाई, और आसपास के अन्य धार्मिक स्थलों की यात्रा भी यहाँ आने वाले लोगों को आकर्षित करती है।
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग दर्शन के लिए कैसे पहुँचें
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग तक पहुँचने के लिए कई विकल्प हैं:
- सड़क मार्ग: खंडवा से ओंकारेश्वर की दूरी लगभग 73 किमी है। मध्यप्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम (एमपीआरटीसी) और निजी बस सेवाएँ उपलब्ध हैं।
- रेल मार्ग: ओंकारेश्वर रोड रेलवे स्टेशन अकोला-रतलाम रेलवे लाइन पर स्थित है। यहाँ से मांधाता, जहाँ ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थित है, लगभग 10 किमी दूर है।
- हवाई मार्ग: ओंकारेश्वर का निकटतम हवाई अड्डा इंदौर हवाई अड्डा (देवी अहिल्याबाई होलकर हवाई अड्डा) है, जो लगभग 77 किमी दूर है।