मध्य प्रदेश के ग्वालियर जिले में शिक्षा विभाग के वेतन वितरण प्रणाली में एक बड़ा घोटाला सामने आया है, जिसने पूरे राज्य में हड़कंप मचा दिया है। अब तक 47 लाख रुपये से अधिक की हेराफेरी का पता चला है, जिसमें शिक्षकों और कर्मचारियों के वेतन का पैसा कई निजी खातों में ट्रांसफर किया गया है। यह गड़बड़ी भोपाल की टीम ने पकड़ी है, जिसके बाद ग्वालियर की टीम को गहन जांच के आदेश दिए गए हैं। इस लेख में हम इस घोटाले की तह तक जाएंगे और इसके विभिन्न पहलुओं को समझने की कोशिश करेंगे।
घोटाले का खुलासा और प्रारंभिक जांच
यह घोटाला ग्वालियर जिले के डबरा ब्लॉक शिक्षा अधिकारी (बीईओ) कार्यालय में सामने आया है। जानकारी के अनुसार, 2018-19 से 2023-24 तक के बीच वेतन वितरण प्रणाली में हेराफेरी की गई है। भोपाल मुख्यालय में सेंट्रल सॉफ्टवेयर ने असंबंधित बैंक खातों में धनराशि के ट्रांसफर को पहचाना, जिससे इस घोटाले का पर्दाफाश हुआ।
शुरुआती जांच के अनुसार, घोटालेबाजों ने सिस्टम में हेरफेर करके फर्जी कर्मचारियों के नाम जोड़े और उनके खातों में वेतन ट्रांसफर किया। इसके अलावा, कुछ वास्तविक कर्मचारियों के वेतन में भी हेराफेरी की गई और अतिरिक्त राशि निजी खातों में भेज दी गई।
जांच कमेटी का गठन और आगे की कार्रवाई
घोटाले की पुष्टि होने के बाद, कोष एवं लेखा ग्वालियर के संयुक्त संचालक एलएन सुमन ने जांच के लिए एक विशेष कमेटी का गठन किया है। यह कमेटी घोटाले के पीछे के लोगों की पहचान करने, हेराफेरी की गई कुल राशि का पता लगाने और भविष्य में इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए आवश्यक कदम उठाने का काम करेगी।
जांच के दायरे में बीईओ कार्यालय के कर्मचारी, बैंक अधिकारी और अन्य संबंधित व्यक्ति शामिल हैं। इसके अलावा, फर्जी खातों के बारे में जानकारी जुटाने के लिए पुलिस की भी मदद ली जा रही है।
यह घोटाला एक बार फिर उजागर करता है कि सरकारी विभागों में तकनीकी प्रणालियों की मजबूती और निगरानी कितनी महत्वपूर्ण है। कोष एवं लेखा विभाग द्वारा उपयोग किया जाने वाला सॉफ्टवेयर संदिग्ध लेनदेन को पहचानने में सक्षम था, जिससे इस घोटाले का पर्दाफाश हो सका।