भोपाल, मध्य प्रदेश की राजधानी, जहां शिक्षा के भविष्य को लेकर आशाएं जगती हैं, वहीं एक अजीबोगरीब घटनाक्रम सामने आया है। जिला शिक्षा अधिकारी द्वारा सात शिक्षकों को सस्पेंड कर दिया गया है, सिर्फ इसलिए कि उन्होंने अपनी समस्याओं को लेकर मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव तक अपनी आवाज पहुंचाई। यह घटना न केवल शिक्षा व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार और अन्याय को दर्शाती है, बल्कि महिला शिक्षकों की आवाजों को दबाने के एक अमानवीय प्रयास की तरह भी दिखाई देती है।
जिला शिक्षा अधिकारी द्वारा जारी आदेश में कहा गया है कि शिक्षकों ने मुख्यमंत्री के पास जाकर नियमों का उल्लंघन किया है। लेकिन यह सवाल उठता है कि क्या शिक्षकों के पास अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाने का कोई और रास्ता नहीं था? क्या उनकी समस्याओं को सुलझाने के लिए शिक्षा विभाग में कोई तंत्र ही नहीं है?
यह सात शिक्षक, जो सीएम राइज महात्मा गांधी स्कूल के हैं, पदस्थापना, वेतन, कार्यस्थल पर हो रही अनियमितताओं और अन्य समस्याओं से जूझ रहे थे। स्थानीय स्तर पर उनके आवेदनों पर कोई ध्यान नहीं दिया गया, जिसके बाद उन्होंने लोक शिक्षण संचालनालय और स्कूल शिक्षा मंत्री तक अपनी गुहार लगाई। जब उनका कोई सुनवाई नहीं हुआ तो उन्होंने आखिरकार मुख्यमंत्री तक अपनी बात पहुंचाने का फैसला लिया।
यह समझना जरूरी है कि शिक्षकों ने मुख्यमंत्री के पास जाने का फैसला हताशा और निराशा की परिणति के रूप में लिया। उन्हें लग रहा था कि उनके अधिकारों को दबाया जा रहा है और उनका कोई सुनवाई नहीं हो रही है। लेकिन जिला डीईओ अंजनी कुमार त्रिपाठी ने शिक्षकों को अनुशासनहीनता का आरोप लगाते हुए उन्हें सस्पेंड कर दिया। उनका तर्क है कि शिक्षकों को पहले विभागीय माध्यमों से अपनी बात रखनी चाहिए थी, लेकिन विभागीय माध्यमों में ही तो खामियां हैं।
इस मामले में एक बात खास तौर पर ध्यान देने योग्य है कि निलंबित किए गए सात शिक्षकों में से अधिकांश महिलाएं हैं। यह सवाल उठाता है कि क्या शिक्षा व्यवस्था में महिलाओं की आवाज को दबाने का प्रयास किया जा रहा है? यह घटना न केवल शिक्षकों के हक की लड़ाई, बल्कि शिक्षा व्यवस्था में सुधार और पारदर्शिता की मांग का प्रतीक है।
शिक्षकों को बिना किसी भय के अपनी समस्याओं को लेकर आवाज उठाने में सक्षम होना चाहिए, और शिक्षा विभाग को उनकी समस्याओं का समाधान करने के लिए जिम्मेदार होना चाहिए।
यह मामला न केवल शिक्षा व्यवस्था में सुधार लाने की आवश्यकता को दर्शाता है, बल्कि महिला शिक्षकों की आवाजों को दबाने की मानसिकता को भी चुनौती देता है। इस सस्पेंशन के खिलाफ शिक्षकों के साथ-साथ समाज के हर वर्ग को आवाज उठानी होगी और शिक्षा व्यवस्था में पारदर्शिता और न्याय सुनिश्चित करने के लिए काम करना होगा।